पुंसवन संस्कार | Punsavan Sanskar | Baby Shower

Punsavan Sanskar – सोलह संस्कारों में से यह दूसरा संस्कार है। यह किसी भी गर्भवती महिला के लिए व होने वाली संतान के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। और हमारी कोशिश है कि हम आपको इस संस्कार के महत्वपूर्ण पहलूओं की जानकारी दें जिससे हम सभी अपनी सनातन संस्कृति व परंपराओं की जड़ो से जुड़े रहें और इन संस्कारों के माध्यम से अपनी संतान को श्रेष्ठ संस्कारवान उत्तम गुणों वाली संतान बना सके।

पुंसवन संस्कार | Punsavan Sanskar | Baby Shower

क्या होता है पुंसवन संस्कार-:

गर्भघारण करने के तीन महीने पश्चात शिशु के मस्तिष्क का विकास शुरु हो जाता है। इसी समय पुंसवन संस्कार के द्वारा माता के गर्भ में पल रहे शिशु में संस्कारों की नींव रखी जाती है। शिशु इसी समय गर्भ में काफी कुछ सीखना शुरू कर देता है। कहते हैं इस द्वितीय संस्कार को करने से संतान एक दम हष्ट-पुष्ट होती है। साथ ही गर्भास्थ शिशु की रक्षा भी होती है।

कैसे होता है पुंसवन संस्कार-:

गर्भस्थ शिशु के समुचित विकास के लिए गर्भणी स्त्री का यह संस्कार किया जाता है। इस संस्कार को गर्भ सुनिश्चित होने के तीन महीने के उपरांत पुंसवन संस्कार किया जाता है। इस दिन आचार्य/ पंडित द्वारा गर्भवती महिला के जरिए मंत्रोच्चार के साथ विशेष पूजा कराई जाती है। स्वास्थ्यवर्धक व औषधि युक्त खीर बनाई जाती है व ईष्ट देव को खीर का भोग लगाया जाता है। गर्भणी को कलावा बांधकर, होने वाली मां सहित घर के सभी लोग एक साथ बैठकर प्रसाद ग्रहण करते हैं। और घर के बड़े बुजुर्ग व संस्कार करवाने वाले आचार्य द्वारा गर्भवती महिला को किन नियमों का पालन करना है, उसका दिशा निर्देश दिया जाता है।।

पुंसवन संस्कार का महत्व-:

शिशु गर्भस्थ होने के दौरान शिशु की माता को अच्छी पुस्तकें, सद् ग्रंथ पढ़ने चाहिए। भगवत गीता- श्री रामचरितमानस जैसे सद् ग्रंथों का श्रवण करना चाहिए। मोबाइल टीवी पर फालतू के प्रोग्राम नहीं देखने चाहिए। नकारात्मक लोगों से व नकारात्मक वातावरण से दूर रहना चाहिए।

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हिंसा- क्रोध- राग- द्वेष- अहंकार- लोभ- ईर्ष्या नकारात्मक विचार आदि वृत्तियों से दूर रहना चाहिए। अच्छे वातावरण और सकारात्मक विचारों में रहना चाहिए।

डॉक्टर की सलाह से योग- प्राणायाम करना चाहिए शुद्ध व सात्विक भोजन ग्रहण करना चाहिए। बाहर का भोजन बिल्कुल नहीं करना चाहिए। फास्ट फूड, तले भुने खाने, अधिक तेल मिर्च इत्यादि से परहेज करना चाहिए।

अगर इस संस्कार को आज के परिवेश में समझा जाए तो आप जो भी काम करें उसे भली प्रकार से करें। किसी भी तरह का शास्त्र विरुद्ध   आचरण नहीं करना चाहिए और अच्छे विचार ही मन में लाने चाहिए।

इस दौरान घर में रहने वाले सभी व्यक्तियों को गर्भवती महिला का पूरा ख्याल रखना चाहिए, खान-पीने का विशेष ध्यान रखना चाहिए और हमेशा गर्भवती स्त्री के आसपास सकारात्मक वातावरण बना कर रखना चाहिए, उसे प्रसन्न रखना चाहिए, जिससे शिशु पर अच्छा प्रभाव पड़ सके।

गर्भ के माध्यम से अवतरित होने वाले जीव को बेहतर संस्कार मिल पाएं यही इस संस्कार का मतलब है। सुसंस्कारों की स्थापना के लिए संकल्प करें, पुरुषार्थ करें और देव अनुग्रह के संयोग का प्रयास किया जाना चाहिए।

कैसे होता है पुंसवन संस्कार-:

इस दिन आचार्य/ पंडित द्वारा गर्भवती महिला के जरिए मंत्रोच्चार के साथ विशेष पूजा कराई जाती है। स्वास्थ्यवर्धक व औषधि युक्त खीर बनाई जाती है व ईष्ट देव को खीर का भोग लगाया जाता है। गर्भणी को कलावा बांधकर, होने वाली मां सहित घर के सभी लोग एक साथ बैठकर प्रसाद ग्रहण करते हैं। और घर के बड़े बुजुर्ग व संस्कार करवाने वाले आचार्य द्वारा गर्भवती महिला को किन नियमों का पालन करना है, उसका दिशा निर्देश दिया जाता है।।

पुंसवन संस्कार का मुहूर्त समय-:

वैसे तो पुंसवन संस्कार को करने के लिए सोमवार, बुधवार, बृहस्पतिवार, शुक्रवार अच्छा दिन माना गया है। लेकिन फिर भी जानकार विद्वान से मुहूर्त निकलवा कर शुभ वार के साथ-साथ शुभ नक्षत्र व शुभ तिथि मे ही पुंसवन संस्कार करना चाहिए।।


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