स्वास्तिक चिन्ह का क्या रहस्य है ? (Swastik Ka Rahasya)

कई जगह अनुष्ठानों में वैदिक कर्मकाण्डियों से गणेश पूजन के समय स्वास्तिक पूजन का रहस्य जानने के लिए पूछा तो उन्होंने एक ही उत्तर दिया कि ऐसी ही परम्परा है। (Swastik Ka Rahasya) भगवान गणेश इस रूप में विराजमान होते हैं। इस लेख में हम आपको स्वस्तिक चिन्ह का अर्थ, स्वस्तिक मंत्र और स्वस्तिक चिन्ह का क्या रहस्य के बारे में पूरी जानकारी देंगे।

विशद अध्ययन के बाद स्वास्तिक का निम्न रहस्य पाया-

  • गणपति जल तत्व के अधिपति हैं। जल के चार गुण होते हैं-शब्द, स्पर्श, रूप तथा रस ।
  • सृष्टि चार प्रकार की होती है- स्वेदज, अण्डज, उद्भिज और जरायुज ।
  • जीवकोटि के पुरुषार्थ चार होते हैं-धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष ।
  • जग संचालक श्री गणेश ने देवता, मानव, नाग और असुर । इन चारों को स्वर्ग, पृथ्वी और पाताल में स्थापित किया । इसका संकेत स्वास्तिक का चतुर्भुज देता है ।
  • गीता के अनुसार भगवान के भक्त चार प्रकार के होते हैं- ‘आर्तो, जिज्ञासुर, थार्थी और ज्ञानीय (७/१६)  भगवत्प्राप्ति भी चार प्रकार के साधन परमगुह्यरूप में गीता में प्रतिपादित है-

‘हे मेरे भक्तों, मेरा ध्यान रखो और मेरी पूजा करो, हे मद्यजी। (गीता 18/65)

(क) मन से भगवतचिन्तन न करते हुए मन को भगवन्मय बनाना ।

(ख) भगवान में भक्ति रखना ।

(ग) भगवान की अर्चना करना ।

(घ) भगवान को नमस्कार करना ।

उक्त चार प्रकार के साधनों का संकेत स्वास्तिक की चार भुजाओं से मिलता है ।

  • गणेशजी के चार आयुध होते हैं-पाश, अंकुश, वरदहस्त तथा अभयहस्त । कहा जाता है कि पाश राग का, अंकुश क्रोध का संकेत है। अथवा यह भी समझ सकते हैं कि गणेश जी पाश द्वारा भक्तों के पाप समूहों तथा सम्पूर्ण प्रारब्ध का आकर्षण करके अंकुश से उनका नाश कर देते हैं। उनका वरदहस्त भक्तों की कामना पूर्ति का तथा अभयहस्त सम्पूर्ण भयों से रक्षा का सूचक है ।
  • गणेश जी ऐसे देवता हैं जो सभी कल्पों तथा चारों युगों में धनात्मक दृष्टि (बुद्धि विकास) हेतु उत्पन्न होते रहते हैं । इस प्रकार विनायक के चार हाथ, चतुर्विध सृष्टि, चतुर्विध पुरुषार्थ, चतुर्विध भक्त और चतुर्विध आयुध स्वास्तिक के प्रतीक हैं ।

स्वस्तिक मंत्र और स्वस्तिक का अर्थ

 ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः, स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः,
स्वस्ति नस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः, स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु,
ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः

इस मंत्र का अर्थ है – (Swastik Ka Arth)

  1. महान कीर्ति वाले ऐश्वर्यशाली इंद्र हमारा कल्याण करें
  2. जिसको संसार का विज्ञान और जिसका सब पदार्थों में स्मरण है, सबके पोषणकर्ता वे पूषा (सूर्य) हमारा कल्याण करें
  3. जिनकी चक्रधारा के समान गति को कोई रोक नहीं सकता, वे गरुड़देव हमारा कल्याण करें
  4. वेदवाणी के स्वामी बृहस्पति हमारा कल्याण करें

स्वस्तिवाचन करने का तरीका (Swastik Ka Rahasya)

  1. पूजा शुरू करने से पहले स्वस्तिवाचन करना चाहिए. 
  2. स्वस्तिवाचन के बाद, सभी दिशाओं में अभिमंत्रित जल या पूजा में इस्तेमाल किए गए जल के छींटे लगाए जाते हैं. 
  3. मंत्रोच्चार करते समय दुर्वा या कुशा से जल के छींटे डाले जाते थे. 
  4. ऐसा माना जाता है कि इससे नेगेटिव एनर्जी खत्म हो जाती है. 
  5. मंत्र बोलना नहीं आने पर अपनी भाषा में शुभ प्रार्थना करके पूजा शुरू करनी चाहिए. 

स्वास्तिक बनाने का सही तरीका

बहुत से लोग जल्दी-जल्दी में या जाने अनजाने में गलत तरीके से बना देते हैं। स्वास्तिक बनाने के लिए अनामिका उंगली का इस्तेमाल किया जाता है। सबसे पहले इस बात का ध्यान रखें कि स्वास्तिक बनाते समय कोई भी रखा एक दूसरे को आपस में नहीं काटे। इसके लिए आपको चार रेखाओं से स्वास्तिक बनाना है ना कि दो रेखाओं से।

सबसे पहले ऊपर से नीचे की तरफ एक रेखा खींचें, उसके बाद उस रेखा के छोर पर दाएं से बाएं तरफ ले जाते हुए एक रेखा खींचें, फिर नीचे से ऊपर की तरफ ले जाते हुए एक और रेखा खींचें और अंत में बाएं से दाएं ले जाते हुए एक और रेखा खींचें। इन्हें जब आप देखेंगे तो ये प्लस + की आकृति जैसा लगेगा. दो रेखाओं को काटती हुई एक रेखा बनाई गई है लेकिन आपस में इन्हें कटने नहीं देना है। अब इसी क्रम में इन रेखाओं के छोर पर आगे बढ़ती हुई रेखाएं बनाएंगे। अब इनके ऊपर, ऊपर की तरफ निकलते हुए चार छोटी छोटी रेखाएं बनाएंगे। अंत में स्वास्तिक के बीच में चार बिंदिया रख दें।

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